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हाथकरघा एवं हस्तशिल्प मेला 

पावन पुण्य सरिला क्षिप्रा के तट पर बसे हुए उज्जैन शहर जिसकी गणना भारतवर्ष के महत्वपूर्ण एवं प्रमुख धार्मिक तीर्थ एवं सांस्कृतिक विरासत से मिली हुई धार्मिक नगरी के रूप में पहचान है। यहां 12 ज्योर्तिलिंगों में से एक महाकालेश्वर ज्योर्तिलिंग स्थापित है, जिसका महत्व देश विदेश में विख्यात है। उज्जैन नगरी संस्कृत के प्रकाण्ड विद्वान महाकवि कालिदास की भी नगरी के रूप में विश्व विख्यात है।
महाकवि कालिदास के द्वारा रचित महाकाव्यों एवं उनकी कृतियों को जीवित रखने के उद्धेश्य से उज्जैन में प्रतिवर्ष अखिल भारतीय कालिदास समारोह का आयोजन देव प्रबोधिनी एकादशी से प्रारंभ किया जाता है । महाकवि कालिदास द्वारा रचित नाट्यों की प्रस्तुति राष्ट्रीय एवं अन्तराष्ट्रीय पुरूस्कार प्राप्त कलाकारों द्वारा की जाती है । उक्त समारोह में विश्व एवं राष्ट्रीय स्तर के कलाकारों, विद्वानों, पण्डितों एवं प्रबुद्ध वर्ग के गणमान्य विशिष्ट व्यक्तियों द्वारा भाग लिया जाता है।
कालिदास समारोह के अवसर पर महाकवि कालिदास की कृतियों को जीवित रखने एवं उनके और अधिक प्रचार प्रसार करने हेतु अधिक से अधिक व्यक्तियों को जोड़ने के उद्धेश्य से से अखिल भारतीय कालिदास सामारोह के साथ साथ वर्ष 2001 से जिला पंचायत, उज्जैन द्वारा हाथकरघा एवं हस्तशिल्प मेले का आयोजन निरंतर किया जा रहा है।
उक्त मेले में भारतवर्ष के विभिन्न राज्यों से उत्कृष्ट शिल्पियों को अपने द्वारा उत्पादित वस्तुओं का प्रचार प्रसार करने एवं उनकी विपणन सम्बन्धी समस्याओं के निदान हेतु आमंत्रित किया जाता है। मेले के आयोजन में मध्यप्रदेश शासन, ग्रामोद्योग विभाग के हाथकरघा संचालनालय द्वारा भी आर्थिक सहायता उपलब्ध कराई जा रही है

हाथकरघा एवं हस्तशिल्प मेले का उद्देश्य

1. हाथकरघा एवं हस्तशिल्प मेले का आयोजन प्रारंभ करने का सबसे प्रमुख उद्धेश्य महाकवि कालिदास द्वारा रचित महाकाव्यों एवं प्राचीन परंपराओं एवं नाट्य शैली को जीवित रखने एवं उसमें और अधिक वृद्धि करने के उद्धेश्य से इस मेले का आयोजन प्रारंभ किया गया है ।
2. उक्त मेले के आयोजन में भारतवर्ष के विभिन्न राज्यों से हस्तशिल्पियों/स्वरोजगारियों/कलाकारों द्वारा उत्पादित आकर्षक, मनमोहक एवं उत्कृष्ट वस्तुओं का प्रचार प्रसार कर उनको अपने कला को प्रोत्साहित एवं प्रदर्शन करने के उद्धेश्य से आमंत्रित किया जाता है ।
3. वर्तमान में वस्तुओं का उत्पादन करने वाले श्ल्पियों की प्रमुख समस्या विपणन की है, इस समस्या के निदान हेतु उक्त मेले का आयोजन कर शिल्पियों द्वारा उत्पादित वस्तुओं के विक्रय हेतु बाजार उपलब्ध कराकर विक्रय की समुचित व्यवस्था की जाती है।
4. उक्त मेले में आर्थिक रूप से पिछड़े एवं आर्थिक रूप पिछड़े एवं कमजोर बुनकरों, सहकारी समिति, स्व सहायता समूह, शिल्पियों एवं कुटीर उद्योगों के उद्यमियों को आमंत्रित कर उनकी कला को प्रोत्साहित करना है।
5. मेले में भारतवर्ष के विभिन्न राज्यों से आमंत्रित किये गये शिल्पियों, बुनकरों, स्व-सहायता समूहों, स्वरोजगारियों, सहकारी समितियों, कलाकारों को आमंत्रित कर उनके द्वारा अपनी आकर्षक गतिविधियों एवं उत्पादित वस्तुओं से आम नागरिकों, कालिदास समारोह में पधारे गणमान्य व्यक्तियों, प्रशासनिक अधिकारियों, राजनेताओं आदि को परिचित कराया जाता है ताकि उनके द्वारा की जारही गतिविधियों से सम्बन्धित व्यक्ति प्रोत्साहित होकर अपने उत्पादन को सतत् प्रगतिशील अवस्था में बनाये रखे जो उनकी आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ करने में सहायक है।
6. मेले के आयोजन का मुख्य उद्धेश्य हाथकरघा बुनकरों, बुनकर सहकारी समितियों, औ़द्योगिक सहकारी समितियों के सदस्यों, स्व सहायता समूहों, हस्तशिल्पियों, स्वरोजगारियों को रोजगार प्रदान कर उनको विपणन के पर्याप्त अवसर उपलब्ध कराना है ।

हाथकरघा एवं हस्तशिल्प मेले का महत्व
महाकवि कालिदास की नगरी उज्जैन जिसकी पहचान धार्मिक एवं सास्कृति नगरी के रूप में बनी हुई है।सांस्कृति एवं धार्मिक परंपराओं को सतत् क्रियाशील अवस्था में रखने एवं उनको निरंतर विकसित करने में उक्त मेले का बहुत बड़ा योगदान है। उक्त मेले के आयोजन से भारतवर्ष के विभिन्न शहरों से मेले में आये व्यक्तियों, विद्वानों, प्रबुद्ध व्यक्तियों को भारतवर्ष के विभिन्न राज्यों से आमंत्रित किये गये शिल्पियाँ एवं कलाकारों की कला का प्रदर्शन एवं प्रचार-प्रसार करने में उक्त मेले का बहुत बड़ा योगदान है। उक्त मेले के आयोजन से लुप्त एवं गुप्त प्रतिभाओं को प्रकाश में लाना एवं उनको विकसित करने में उक्त मेला सहायक है ।
उज्जैन शहर में लगने वाले विभिन्न मेले/प्रदर्शनियों में हाथकरघा एवं हस्तशिल्प मेले को विशिष्ट स्थान प्राप्त है। इस मेले में हजारों की संख्या में नागरिक आकर बुनकरों/शिल्पियों एवं कलाकारों की भूरि भूरि प्रशंसा करते हैं एवं उनके द्वारा उत्पादित वस्तुओं को उत्पादित करने में प्रोत्साहित करते हैं, इससे शिल्पियों को रोजगार के अवसर उपलब्ध होते हैं और उनका आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक पिछड़ेपन में बदलाव आता है और वे आधुनिक परिवेश को अपनाने में रूचि लेते हैं |

हाथकरघा एवं हस्तशिल्प मेले की गतिविधियां
1. हाथकरघा एवं हस्तशिल्प मेले में आमंत्रित हाथकरघा बुनकरों, बुनकर सहकारी समितियों, औ़द्योगिक सहकारी समितियों के सदस्यों, स्व सहायता समूहों, हस्तशिल्पियों, स्वरोजगारियों द्वारा उत्पादित वस्त्रों एवं वस्तुओं का विक्रय, प्रदर्शन एवं प्रचार – प्रसार किया जाता है ।
2. मेले के आयोजन को आकर्षक मनमोहक गतिविधियों से आम जनता को जोड़ने हेतु राजस्थान से आमंत्रित लोक कलाकारों द्वारा लोक नृत्य एवं लोक गीतों का सफल आयोजन किया जाता है जिसमें हजारों की संख्या में मेले में आने वाले देर रात तक दर्शक आनंद लेते है ।
3. मध्यप्रदेश शासन के पंचायत एवं सामाजिक न्याय विभाग के कलाकारों द्वारा मालवी गीत एवं लोक गीतों का प्रदर्शन किया जाता है जिसे मेले में आने वाले दर्शकों द्वारा सराहा जाता है ।
4. मेले के आयोजन में मध्यप्रदेश शासन के विभिन्न विभागों द्वारा जन कल्याणकारी कार्यों के अर्न्तगत चलाई जा रही योजनाओं का प्रचार – प्रसार करने के उद्धेश्य के प्रदर्शनी का आयोजन किया जाता है जिससे आम जनता को शासन द्वारा चलाई जारही योजनाओं की जानकारी प्राप्त होती है ।
5. हाथकरघा एवं हस्तशिल्प मेला पूर्ण रूप से ग्रामीण परिवेश से सुसज्जित किया जाता है – जिसमें ग्रामीण क्षेत्रों की वास्तविक स्थिति को आंतरिक साज सज्जा के रूप में प्रदर्शित किया जाता है।
6. मेले के आयोजन में बच्चों के मनोरंजन हेतु प्रमुख रूप से चक्र्री झूले, गुब्बारे, मिक्की माउस आदि मनोरंजन के साधनों की व्यवस्था की जाती है।
7. हाथकरघा एवं हस्तशिल्प मेले में आमंत्रित हाथकरघा बुनकरों, बुनकर सहकारी समितियों, औ़द्योगिक सहकारी समितियों के सदस्यों, स्व सहायता समूहों, हस्तशिल्पियों, स्वरोजगारियों हेतु समुचित सुरक्षा बीमा की समुचित व्यवस्था की जाती है।
8. मेले को अधिक आकर्षक बनाने के उद्धेश्य से राजस्थान, गुजरात, पंजाब के स्टॉलों से विविध व्यंजनों की व्यवस्था की जाती है । उक्त व्यवस्था से मेले में आने वालों को मेले का अवलोकन करना अधिक आनंददायी होजाता है ।

हाथकरघा एवं हस्तशिल्प मेले की विगत वर्षों की प्रगति
अखिल भारतीय कालिदास समारोह के अवसर पर वर्ष 2001 से जिला पंचायत, उज्जैन द्वारा उज्जैन की सांस्कृतिक एवं धार्मिक परंपराओं को सतत् चलायमान रखने के उद्धेश्य से उक्त मेले का आयोजन किया जा रहा है। मेले में भारतवर्ष के 15 राज्यों से जिनमें प्रमुख रूप से राजस्थान, गुजरात, उत्तरांचल, पंजाब, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, असम, छत्तीसगढ़ से हाथकरघा बुनकरों, बुनकर सहकारी समितियों, औ़द्योगिक सहकारी समितियों के सदस्यों, स्व सहायता समूहों, हस्तशिल्पियों, स्वरोजगारियों द्वारा अपने उत्पाद का प्रदर्शन, प्रचार-प्रसार एवं विक्रय हेतु आमंत्रित किया जाता है। मेले में लगभग 300 स्टॉलों का निर्माण कर आबंटित किये जाते हैं। मेले में प्रकाश की भी उत्कृष्ट व्यवस्था की जाती है। स्टॉल धारियों को अपने उत्पादन एवं स्वयं की सुरक्षा की भी समुचित व्यवस्था की जाती है। मेले में भाग लेने वाले हितग्राहियों को स्टॉल की व्यवस्था निःशुल्क उपलब्ध कराई जाती है ।
मेले में भाग लेने वाले हाथकरघा बुनकरों, बुनकर सहकारी समितियों, औ़द्योगिक सहकारी समितियों के सदस्यों, स्व सहायता समूहों, हस्तशिल्पियों, स्वरोजगारियों द्वारा अपने उत्पादों का प्रचार प्रसार प्रदर्शन, विक्रय किया जाता है जिसमें प्रमुख रूप से पेपरमेशी शिल्प से निर्मित खिलौने, काष्ट शिल्प से निर्मित घरेलू उपयोग की वस्तुएं, खिलौने, टेराकोटा शिल्प से निर्मित घरेलू उपयोग की वस्तुएं, लौह शिल्प से निर्मित मूर्तियां, चन्देरी के बुनकरों का उत्पादित चन्देरी साड़ियां, सलवार सूट, महेश्वर के बुनकरों द्वारा बुने गये वस्त्रों में साड़ी एवं ड््रेस मटेरियल, भेरवगढ़ प्रिंट के चादरे, ड्रेस मटेरियल, सारंगपुर पड़ाना के आकर्षक एवं मनमोहनी चादरें एवं ड्रेस मटेरियल, पर्दा क्लॉथ, सौंसर एवं वारासिवनी के विभिन्न वस़्त्र, देवास के चर्म से निर्मित बेग, पर्स, बेल्ट आदि, रतलाम एवं उज्जैन के लाख शिल्प से निर्मित वस्तुएं एवं मध्यप्रदेश के हाथकरघा क्लस्टरों में निर्मित वस्त्रों का प्रदर्शन एवं विक्रय किया जाता है। मध्यप्रदेश के अलावा पंजाब एवं आसाम की शालें, राजस्थान के जेसलमेर के टेराकोटा, हिमाचल प्रदेश के उनी वस्त्र, छत्तीसगढ़ का कोसा सिल्क के वस्त्र आदि का प्रदर्शन एवं विक्रय किया जाता है। मेले में विभिन्न हितग्राहियों द्वारा मेला अवधि में लगभग 120.00 लाख से 200.00 लाख़ का विक्रय किया जाता है। हाथकरघा एवं हस्तशिल्प मेला औसतन 10-12 दिवस की अवधि के लिये किया जाता है। मेले के आयोजन में प्रतिवर्ष लगभग 20.00 लाख से 24.00 लाख रूपये का व्यय किया जाता है, जिसमें ग्रामोद्योग विभाग द्वारा भी आर्थिक सहायता उपलब्ध कराई जाती है। पूर्व वर्ष 2022 में हाथकरघा संचालनालय, म. प्र. शासन, भोपाल से राशि रूपये 3.00 लाख की अर्थिक सहायता उपलब्ध कराई गई थी।

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